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जय बोलो बेईमान की

काका हाथरसी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4726
आईएसबीएन :81-288-0696-3

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पुस्तक का नाम देखकर पाठक यह समझें कि इसमें केवल बेईमान की ही जय बोली गई है। कविताएँ और भी बहुत-सी हैं

jay bolo beiman ki

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

फिल्म ‘बेईमान’ को जब वर्ष का प्रथम पुरस्कार मल गया तो ईमान का भी ईमान हिल गया-...हमारा हृदय खुशी से खिल गया, क्योंकि कविता के लिए मैटर मिल गया !
इसी फिल्म को एक मुखड़ा पकड़कर लिख डाली एक कविता-‘जय बोलो बेईमान की’। जो सज्जन या दुर्जन इस कविता को सस्वर गाएँगे, उनके सब दुःख-दारिद्रय दूर हो जाएँगे। गायन से भगवान बड़ी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं।
इधर कुछ दिनों से ‘पाकेट बुक्स’ वालों की ओर से तकाजे आ रहे थे-‘काका ! नई पुस्तक कब दोगे, बहुत दिन हो गए हैं ?’ उनकी प्रेरणा से हमारी कल्पना जाग्रत हुई, अतः इस वर्ष जून-जुलाई के दो महीने नैनीताल की तरावट में बिताए और यह पुस्तक तैयार कर लाए।

इस पुस्तक के लिए तीन-चार नाम ध्यान में आए थे, किंतु प्रकाशक जी को ‘जय बोलो बेईमान की’ बहुत पसंद आया। हमने उनके शीश नवाया, जय हो महाराज ! आप सब कुछ जानते हैं, समय की गति को पहचानते हैं।
वास्तव में देखा जाए तो झूठ और बेईमानी, ये दोनों सिस्टर कंसर्न हैं। इनका आपस में वैसा ही संबंध है, जैसा मियाँ और जिया का पाक से, मुँह का नाम से और पोस्टमैन का डाक से। एक के बिना दूसरे का आस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है।
श्रीमती काकी की राय थी कि ‘जय बोलो बेईमान की’, इसमें से ‘बे’ हटा दिया जाए। हमने कहा, ‘कैसे बेतुकी बातें करती है, ‘बे’ हटाने से तो बेड़ा गर्क हो जाएगा ! अगर पुलिस वाले अपनी बेरहमी में से ‘बे’ हटा दें तो बेचारे बेरोज़गार हो जाएँ। बेशरमी का ‘बे’ बटाकर क्या आज कोई नेता जीवित रह सकता है ? मिस बेनजीर में यदि ‘बे’ नहीं होता तो शिमला में ऐसे हल्ले होते उनके् ? सैकड़ों नजीर’ घूमते हैं, कौन पूछता है बेचारों को !

‘कहा तक कहें जी ! बेशुमार बातें ऐसी हैं, जिनमें ‘बे’ का बेहिसाब, बेमिलास महत्त्व है। बेगम का ‘बे’ हटाया तो ‘गम’ रह गया। इसलिए बेकार की बातें छोड़ों, ‘बे’ से नाता जोड़ो। हम इसमें से ‘बे’ हटाने की बेवकूफी नहीं करेंगे। अच्छा, तुम्हीं बताओ, बेटी-बेटी के ‘बे’ हट जाएँ तो रह जाएँगे न सिर्फ ‘अ-टी’, बोलो न काकी ?’
हमारे इस बेहद प्रभावशाली भाषण से उनका संशोधन गिर गया, मौन समर्थन मिल गया।
अब तक हमारी चौबीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, यह पच्चीसवीं है। कुल तीस पुस्तकें पूर्ण करके हम भगवान के यहाँ जाएँगे। बैकुंठ में 1 अप्रैल 1984 को एक विराट् कवि-सम्मेलन होने वाला है। उसमें काका हाथसी के अतिरिक्त कुछ और कवि भी जाएँगे, अभी उनके नाम नहीं बताएँगे।

विचार तो यही है लेकिन कुछ पता नहीं चलता डियर, जाने कब हो जाए लाइन क्लियर ! तेरे मन कछु और है, विधना के कछु और !’ फिर भी इस मसले पर कर रहे हैं गौर, शुरू कर दी है एक पुस्तक और। उसका नाम अपने पाठकों की राय से रखेंगे। जिसका सुझाव सर्वश्रेष्ठ होगा, उसे हाथरस बुलाएँगे, हाथ मिलाएँगे और जलेबियाँ खिलाएँगे असली घी की दूकान की, जय बोलो बेईमान की !

जय बोल बेईमान की


मन, मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार,
ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार।
झूटों के घर पंडित बाँचें, कथा सत्य भगवान की,
जय बोलो बेईमान की !
प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल,
टेप-रिकार्डर में भरे, चमगादड़ के बोल।
नित्य नई योजना बन रहीं, जन-जन के कल्याण की,
जय बोल बेईमान की !
महँगाई ने कर दिए, राशन-कारड फेस
पंख लगाकर उड़ गए, चीनी-मिट्टी तेल।
‘क्यू’ में धक्का मार किवाड़ें बंद हुई दूकान की,
जय बोल बेईमान की !
डाक-तार संचार का ‘प्रगति’ कर रहा काम,
कछुआ की गति चल रहे, लैटर-टेलीग्राम।
धीरे काम करो, तब होगी उन्नति हिंदुस्तान की,
जय बोलो बेईमान की !
दिन-दिन बढ़ता जा रहा काले घन का जोर,
डार-डार सरकार है, पात-पात करचोर।
नहीं सफल होने दें कोई युक्ति चचा ईमान की,
जय बोलो बेईमान की !
चैक केश कर बैंक से, लाया ठेकेदार,
आज बनाया पुल नया, कल पड़ गई दरार।
बाँकी झाँकी कर लो काकी, फाइव ईयर प्लान की,
जय बोलो बईमान की !
वेतन लेने को खड़े प्रोफेसर जगदीश,
छहसौ पर दस्तखत किए, मिले चार सौ बीस।
मन ही मन कर रहे कल्पना शेष रकम के दान की,
जय बोलो बईमान की !
खड़े ट्रेन में चल रहे, कक्का धक्का खायँ,
दस रुपए की भेंट में, थ्री टायर मिल जायँ।
हर स्टेशन पर हो पूजा श्री टी.टी. भगवान की,
जय बोलो बईमान की !
बेकारी औ’ भुखमरी, महँगाई घनघोर,
घिसे-पिटे ये शब्द हैं, बंद कीजिए शोर।
अभी जरूरत है जनता के त्याग और बलिदान की,
जय बोलो बईमान की !
मिल-मालिक से मिल गए नेता नमकहलाल,
मंत्र पढ़ दिया कान में, खत्म हुई हड़ताल।
पत्र-पुष्प से पाकिट भर दी, श्रमिकों के शैतान की,
जय बोलो बईमान की !
न्याय और अन्याय का, नोट करो जिफरेंस,
जिसकी लाठी बलवती, हाँक ले गया भैंस।
निर्बल धक्के खाएँ, तूती होल रही बलवान की,
जय बोलो बईमान की !
पर-उपकारी भावना, पेशकार से सीख,
दस रुपए के नोट में बदल गई तारीख।
खाल खिंच रही न्यायालय में, सत्य-धर्म-ईमान की,
जय बोलो बईमान की !
नेता जी की कार से, कुचल गया मजदूर,
बीच सड़कर पर मर गया, हुई गरीबी दूर।
गाड़ी को ले गए भगाकर, जय हो कृपानिधान की,
जय बोलो बईमान की !


आरती श्री उल्लूजी की



जय उल्लू पापा ! ओम् जय उल्लू पापा।
सब पक्षिन में श्रेष्ठ, अर्थ के फीते से नापा। ओम्...।

श्याम सलोने मुख पर शोभित अँखियाँ द्वय ऐसे।
चिपक रहीं प्राचीन चवन्नी चाँदी की जैसे। ओम्...।

लक्ष्मी-वाहक दरिद्र-नाशक महिमा जगजानी।
सरस्वती का हंस आपका भरता है पानी। ओम्..।

अर्थवाद ने बुद्धिवाद के दाँत किए खट्टे।
विद्वज्जन हैं दुखी, सुखी हैं सब ‘तुम्हरे पट्ठे’। ओम्...।

जब ‘पक्षी-सरकार’ बने तुम डबल सीट पाओ।
प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री खुद बन जाओ। ओम्...।

सभी लखपती बनें, न हो कोई भूखा-नंगा।
बहे देश के गाँव-गाँव में, नोटों की गंगा। ओम्...।

पूँजीवादी पक्षी तुम सम और नहीं दूजा।
वित्तमंत्री, नित्य आपकी करते हैं पूजा। ओम्...।

उल्लू जी की आरति यदि राजा-रानी गाते।
‘काका’ उनके प्रिवीपर्स छिनने से बच जाते। ओम्...।

मूर्खिस्तान ज़िंदाबाद



स्वतंत्र भारत के बेटे और बेटियो !
माताओ और पिताओ,
आओ, कुछ चमत्कार दिखाओ।
नहीं दिखा सकते ?
तो हमारी हाँ में हाँ ही मिलाओ।
हिंदुस्तान, पाकिस्तान अफगानिस्तान
मिटा देंगे सबका नामो-निशान
बना रहे हैं-नया राष्ट्र ‘मूर्खितान’
आज के बुद्धिवादी राष्ट्रीय मगरमच्छों से
पीड़ित है प्रजातंत्र, भयभीत है गणतंत्र
इनसे सत्ता छीनने के लिए
कामयाब होंगे मूर्खमंत्र-मूर्खयंत्र
कायम करेंगे मूर्खतंत्र।

हमारे मूर्खिस्तान के राष्ट्रपति होंगे-
तानाशाह ढपोलशंख
उनके मंत्री (यानी चमचे) होंगे-
खट्टासिंह, लट्ठासिंह, खाऊलाल, झपट्टासिंह
रक्षामंत्री-मेजर जनरल मच्छरसिंह
राष्ट्रभाषा हिंदी ही रहेगी, लेकिन बोलेंगे अँगरेजी।
अक्षरों की टाँगें ऊपर होंगी, सिर होगा नीचे,
तमाम भाषाएँ दौड़ेंगी, हमारे पीछे-पीछे।
सिख-संप्रदाय में प्रसिद्ध हैं पाँच ‘ककार’-
कड़ा, कृपाण, केश, कंघा, कच्छा।
हमारे होंगे पाँच ‘चकार’-
चाकू, चप्पल, चाबुक, चिमटा और चिलम।

इनको देखते ही भाग जाएँगी सब व्याधियाँ
मूर्खतंत्र-दिवस पर दिल खोलकर लुटाएँगे उपाधियाँ
मूर्खरत्न, मूर्खभूषण, मूर्खश्री और मूर्खानंद।

प्रत्येक राष्ट्र का झंडा है एक, हमारे होंगे दो,
कीजिए नोट-लँगोट एंड पेटीकोट
जो सैनिक हथियार डालकर
जीवित आ जाएगा
उसे ‘परमूर्ख-चक्र’ प्रदान किया जाएगा।
सर्वाधिक बच्चे पैदा करेगा जो जवान
उसे उपाधि दी जाएगी ‘संतान-श्वान’
और सुनिए श्रीमान-
मूर्खिस्तान का राष्ट्रीय पशु होगा गधा,
राष्ट्रीय पक्षी उल्लू या कौआ,
राष्ट्रीय खेल कबड्डी और कनकौआ।
राष्ट्रीय गान मूर्ख-चालीसा,
राजधानी के लिए शिकारपुर, वंडरफुल !
राष्ट्रीय दिवस, होली की आग लगी पड़वा।

प्रशासन में बेईमान को प्रोत्साहन दिया जाएगा,
ईमानदार सुर्त होते हैं, बेईमान चुस्त होते हैं।
वेतन किसी को नहीं मिलेगा,

रिश्वत लीजिए,
सेवा कीजिए !

‘कीलर कांड’ ने रौशन किया था
इंगलैंड का नाम,
करने को ऐसे ही शुभ काम-
खूबसूरत अफसर और अफसराओं को छाँटा जाएगा
अश्लील साहित्य मुफ्त बाँटा जाएगा।

पढ़-लिखकर लड़के सीखते हैं छल-छंद,
डालते हैं डाका,
इसलिए तमाम स्कूल-कालेज
बंद कर दिए जाएँगे ‘काका’।
उन बिल्डिगों में दी जाएगी ‘हिप्पीवाद’ की तालीम
उत्पादन कर से मुक्त होंगे
भंग-चरस-शराब-गंजा-अफीम
जिस कवि की कविताएँ कोई नहीं समझ सकेगा,
उसे पाँच लाख का ‘अज्ञानपीठ-पुरस्कार मिलेगा।
न कोई किसी का दुश्मन होगा न मित्र,
नोटों पर चमकेगा उल्लू का चित्र !

नष्ट कर देंगे-
धड़ेबंदी गुटबंदी, ईर्ष्यावाद, निंदावाद।
मूर्खिस्तान जिंदाबाद !


सिगरेट समीक्षा



मिस्टर भैंसानंद का फूल रहा था पेट,
पीते थे दिन-रात में, दस पैकिट सिगरेट।
दस पैकिट सिगरेट डाक्टर गोयल आए
दिया लैक्चर तंबाकू के दोष बताए।
‘कैंसर हो जाता ज्यादा सिगरेट पीने से,
फिर तो मरना ही अच्छा लगता, जीने से।’

बोले भैंसानंद जी, लेकर एक डकार,
आप व्यर्थ ही हो रहे, परेशान सरकार।
परेशान सरकार, तर्क है रीता-थोता,
सिगरेटों में तंबाकू दस प्रतिशत होता।
बाकी नव्वै प्रतिशत लीद भरी जाती है,
इसीलिए तो जल्दी मौत नहीं आती है।


हथियार रहस्य



अमरीका ने हिंद को, नहीं दिए हथियार,
ऐसी झूठी बात क्यों, कहते हो बेकार ?
कहते हो बेकार, दृश्य देखा जन-जन ने,
मियाँ नियामी की मार्फत भेजे निक्सन ने।
नीची नज़र किए सब सैनिक खड़े अभागे,
ढेर लगा था जनरल मानिकशा के आगे।




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